फीचर डेस्क :
बदलते समय के साथ गेहूं की नई-नई प्रजातियां विकसित हो जाने से इसकी खेती में काफी सुधार हुआ है। ऐसे में मध्य प्रदेश के किसानों के लिए 25 क्विंटल तक की उपज देने वाली गेहूं की नई किस्म ‘कुदरत गजानंद’ किसानों के लिए वरदान साबित हो सकती है। इसका फायदा यह होगा कि इससे मात्र 110 दिनों के भीतर ही पूरी गेहूं की फसल पककर तैयार हो जाएगी।
गौरतलब है कि मध्य प्रदेश में इस साल सामान्य से आठ फीसद बारिश कम हो गई है। कुछ जिलों में अच्छी, तो कुछ जिलों में कम वर्षा हुई है। ऐसे में किसान इस फसल की किस्म को लगाकर काफी अच्छा मुनाफा कमा सकते है। गजानंद किस्म को 10 साल के एक गहरे अनुसंधान के बाद जिले के ग्राम टंडिया निवासी किसान प्रकाशसिंह रघुवंशी ने विकसित की है। बौना पौधा आठ इंच लंबी बाल तथा इसके प्रत्येक बाल में 70 शरबती चमकीले दानें किसानों की उन्नति का प्रमाण हैं। यह किस्म सिंचित और असिंचित क्षेत्र के मौसम में पूरी तरह से सुरक्षित रहेगी। अभी इस किस्म के पौधे काफी ज्यादा छोटे और बौने हैं, तो इस फसल के पौधे हवा में पूरी तरह से सुरक्षित रहेंगे। इससे किसानों की फसलों को एक फायदा यह है कि इसके सहारे विभिन्न रोगों से लड़ने की क्षमता में आसानी से मदद मिलेगी।
गेहूं की वैसे तो कई तरह की प्रजातियां होती हैं, जो अपने आप में काफी खास हैं, लेकिन इसके साथ ही गेहूं को कई तरह के रोग भी हो जाते हैं, जो फसल को भारी नुकसान पहुंचाते हैं। गेहूं में मुख्य रूप से पीला रतुआ, गेरुआ रोग और काला कंडुआ रोग होता है। यह रोग मुख्य रूप से फफूंद के रूप में फैलता है। इसके अलावा जैसे-जैसे तापमान बढ़ता जाता है, गेहूं को पीला रतुआ रोग भी लग जाता है। यह रोग खासकर पहाड़ी क्षेत्रों में फैलता है।
खरीफ की फसल काटने के बाद खेत की पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल के जरिये करें। इससे खरीफ फसल के अवशेष और खरपतवार मिट्टी में दबकर सड़ जाए। इसके बाद कम से कम 2-3 बार देसी हल से जुताई करें। गेहूं की उन्नत किस्मों का सबसे बड़ा फायदा यह है कि इससे पौधे झुकते नहीं हैं। दाने छिटकते नहीं हैं। इसके लिए जमीन का बेहतर चयन किया जाना चाहिए। इसके लिए यदि आप कपास की काली मिट्टी गेहूं के लिए प्रयोग करेंगे, तो सिंचाई की कम ही जरूरत पड़ेगी। इसके अलावा गेहूं की अन्य किस्म 3173 गर्मी के प्रति सहनशील, गेरुआ रोग के प्रति प्रतिरोधी मोटी दानों वाली है, जो कि चपाती बनाने के लिए उत्तम है।